स्तुति श्लोकाः
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देवदेव।।1।।
अर्थ― उक्त श्लोक में ईश्वर को सर्वस्व मानते हुए वन्दना की गई है कि हे ईश्वर तुम ही मेरी माता हो और तुम ही मेरे पिता हो। तुम ही मेरे बंधुजन हो और तुम ही मेरे मित्र हो। तुम्हीं विद्या हो और तुम ही धन दौलत हो। हे! मेरे देव (ईश्वर) मेरे लिए तुम ही सब कुछ हो।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।।2।।
अर्थ― उक्त श्लोक में गुरू की महत्ता स्पष्ट करते हुए गुरु को परम ईश्वर के तुल्य बताकर वंदना की गई है। कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) है, गुरू विष्णु (जगत के पालनहार) है, गुरू महेश्वर (शत्रु संहारक) अर्थात भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परम ब्रह्म सर्वशक्तिमान है, ऐसे गुरु को मेरा नमस्कार है।
मूकं करोति वाचालं ,पङ्गुं लङ्घयते गिरिम।
यत्कृपा तमहं वन्दे ,परमानन्दमाधवम् ।।3।।
अर्थ― उक्त श्लोक में ईश्वर की महिमा का बखान किया गया है कि यदि ईश्वर की कृपा हो जाये तो असमर्थ भी समर्थवान बन जाता है। श्लोक में कहा गया है कि जिसकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं, जिसकी कृपा से लंगड़े पर्वतों को पार कर लेते हैं। उस परम माधव (ईश्वर) की मैं वन्दना करता हूँ।
नमस्ते शारदे देवि, कश्मीरपुरवासिनि।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं, विद्यां बुद्धिं च देहि मे।।4।।
अर्थ― उक्त इस लोक में बुद्धि की प्रदाता माँ शारदा (सरस्वती) की वंदना की गई है। इस लोक में कहा गया है कि हे काश्मीरपुर (पर्वतीय स्थलों) में निवास करने वाली माँ शारदा (सरस्वती) मैं आपकी नित्यप्रति वन्दना करता हूँ, मुझे विद्या और बुद्धि प्रदान कीजिए।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ।।5।।
अर्थ― उक्त श्लोक में वसुधैवकुटुम्बकम् की भावना अभिव्यक्त करते हुए सभी के लिए मंगल कामना की गई है। श्लोक में कहा गया है― सभी लोग सुखी हों, सभी लोग निरोगी हों। सभी का भला देखें, कोई भी दुःख का भागीदार न हो।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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