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वर्णों की उत्पत्ति संस्कृत छंद रचना पाठ-1 'डाल-डाल पर, ताल-ताल पर' संस्कृत स्वर वर्ण (प्लुत वर्ण) संस्कृत व्यञ्जन वर्ण ऋ और ऌ का उच्चारण संस्कृत वदतु (संस्कृत बोलिए) रिस्ते-नातों के संस्कृत नाम संस्कृत में समय ज्ञान संस्कृत में शुभकामनाएँ स्तुति श्लोकाः (कक्षा-6) प्रथमः पाठः- शब्दपरिचयः (6th संस्कृत) वन्दना (संस्कृत कक्षा 7) हिन्दी अर्थ प्रथमः पाठः चत्वारि धामानि अनुवाद अभ्यास वन्दना शब्दार्थ व भावार्थ (कक्षा 8 संस्कृत) प्रथमः पाठः लोकहितम मम करणीयम् मङ्गलम् प्रथमः पाठः भारतीवसन्तगीतिः द्वितीयः पाठः कर्तृक्रियासम्बन्धः द्वितीयः पाठः कालबोधः द्वितीयः पाठः कालज्ञो वराहमिहिरः मङ्गलम् प्रथमः पाठः शुचिपर्यावरणम् द्वितीयः पाठः 'बुद्धिर्बलवती सदा' तृतीयः पाठः सर्वनामशब्दाः (भाग- 1) तृतीयः पाठः सर्वनामशब्दाः (भाग- 2) तृतीयः पाठ: बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते चतुर्थः पाठ: चाणक्यवचनानि चतुर्थः पाठ: सङ्ख्याबोधः पंचम: पाठः रक्षाबंधनम् द्वितीयः पाठः स्वर्णकाकः तृतीयः पाठः शिशुलालनम् तृतीयः पाठः गोदोहदम् (भाग -१) तृतीयः पाठः 'गोदोहनम्' (भाग - २) तृतीयः पाठः गणतन्त्रदिवसः चतुर्थः पाठः नीतिश्लोकाः वन्दना (कक्षा 3 संस्कृत) वन्दना (कक्षा 4 संस्कृत) वन्दना (कक्षा 5 संस्कृत) पञ्चमः पाठः अहम् ओरछा अस्मि चतुर्थः पाठः कल्पतरुः (9th संस्कृत) पञ्चमः पाठः 'सूक्तिमौक्तिकम्' (9th संस्कृत) 'पुष्पाणां नामानि' (कक्षा 3) संस्कृत खण्ड अभ्यास कक्षा 4 संस्कृत – प्रथमः खण्डः वचनपरिचयः फलानां नामानि कक्षा 3 (संस्कृत खण्ड) अभ्यास प्रथम खण्डः चित्रकथा (कक्षा 5)










तृतीयः पाठः शिशुलालनम्


Text ID: 57
6122

तृतीयः पाठः 'शिशुलालनम्'
पाठ परिचय

प्रस्तुतः पाठः कुन्दमाला - इतिनाम्नो दिङ्नागविरचितस्य संस्कृतस्य प्रसिद्धनाट्यग्रन्थस्य पञ्चमाङ्कात् सम्पादनं कृत्वा सङ्कलितोऽस्ति। अत्र नाटकांशे रामः स्वपुत्रौ लवकुशौ सिंहासनम् आरोहयितुम् इच्छति किन्तु उभावपि सविनयं तं निवारयतः। सिंहासनारूढः रामः उभयोः रूपलावण्यं दृष्ट्वा मुग्धः सन् स्वक्रोडे गह्वाति। पाठेऽस्मिन् शिशुवात्सल्यस्य मनोहारिवर्णनं विद्यते।
हिन्दी अनुवाद— प्रस्तुत पाठ कुन्दमाला नामक दिङ्नाग द्वारा विरचित संस्कृत के प्रसिद्ध नाट्यग्रन्थ के पंचम अंक से सम्पादित करके संकलित है। इस नाटक के अंश में राम अपने पुत्रों लव-कुश को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु दोनों ही नम्रतापूर्वक उनको मना करते हैं। सिंहासन पर बैठे हुए राम दोनों की सुन्दरता की देखकर मोहित होते हुए अपनी गोद में बैठाते हैं। इस पाठ में शिशु प्रेंम का मनोहारी वर्णन है।

पाठ का हिन्दी अनुवाद

(सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ)
हिन्दी अनुवाद— (राम सिंहासन पर बैठे हैं। इसके बाद विदूषक के द्वारा मार्ग बताए जाते हुए तपस्वी लव और कुश प्रवेश करते हैं।)
विदूषकः — इत इत आयौं!
हिन्दी अनुवाद— (इधर से आर्य! इधर से!)
कुशलवौ — (रामम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य?
हिन्दी अनुवाद— [(राम के पास पहुँचकर और प्रणाम करके) क्या महाराज कुशल हैं?]
रामः — युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः। (आसनार्धमुपवेशयति)
हिन्दी अनुवाद— [आपके दर्शन से कुशल ही हूँ। क्या हम केवल आप दोनों के कुशल प्रश्न के ही पात्र हैं? अतिथि लोगों के योग्य गले लगाने के नहीं? (आलिंगन करके) अहो (आपका) स्पर्श तो हृदय को छूने वाला है। (आसन के आधे हिस्से में बैठाते हैं)]
उभौ — राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
हिन्दी अनुवाद— (यह तो राजा का आसन है, (इस पर) बैठना उचित नहीं है।)
रामः — सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मादङ्क — व्यवहतिमध्यास्यतां सिंहासनम्।
हिन्दी अनुवाद— [रुकावट सहित चरित्र की हानि नहीं होगी। इसलिए गोद के व्यवधान के साथ सिंहासन पर बैठिए। (अर्थात् सीधे आसन पर बैठने से आपकी तपस्वी मर्यादा का हनन हो, तो आप मेरी गोद में बैठ जाइए।) (गोद में बैठाते हैं।)]
उभौ — (अनिच्छां नाटयतः) राजन्!
अलमतिदाक्षिण्येन।
हिन्दी अनुवाद — [(आनाकानी का अभिनय करते हैं) महाराज! अत्यधिक उदारता मत दिखाइए।]
रामः — अलमतिशालीनतया।
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक- केतकच्छदत्वम्॥
हिन्दी अनुवाद — [(आप दोनों भी) अधिक विनम्रता मत दिखाइए। अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय ही होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शङ्कर जी के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी के पुष्पों से निर्मित आभूषण की भाँति सुशोभित होता है।]
राम: — एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि-क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोर्वंशस्य कर्त्ता?
हिन्दी अनुवाद — [(मैं) आप दोनों की सुन्दरता को देखकर उत्पन्न हुई उत्सुकता से पूछ रहा हूँ (कि) — क्षत्रिय कुल के दादाओं सूर्य एवं चन्द्र में से आपके वंश के जनक कौन हैं ?]
अन्वयः — गुणमहताम् अपि वयोऽनुरोधात् शिशुजनः लालनीयः एव भवति। बालभावात् हि हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
(यहाॅं तक ​​कि सबसे बड़े गुणों को भी उम्र के अनुरोध पर संजोया जाना चाहिए। क्योंकि बचपन से ही हिममानव भी जानवरों के स्वामी का सिर और केतका का आवरण बन जाता है।)
लव: — भगवन् सहस्रदीधितिः।
हिन्दी अनुवाद— (भगवान् सूर्य! (अर्थात् हम सूर्यवंशी हैं)।)
रामः — कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ?
हिन्दी अनुवाद— (क्या हमारे समान कुल में पैदा होने वाले हो गये?)
विदूषकः — किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?
हिन्दी अनुवाद— (क्या दोनों का एक ही उत्तर है?)
लवः — भ्रातरावावां सोदर्यो।
हिन्दी अनुवाद— (हम दोनों सहोदर (सगे) भाई हैं।)
राम: — समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
हिन्दी अनुवाद— [(आप दोनों की) शरीर की बनावट समान है। आयु में भी कोई अन्तर नहीं है।]
लवः — आवां यमलौ।
हिन्दी अनुवाद— (हम दोनों जुड़वा है।)
रामः — सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम्?
हिन्दी अनुवाद— (अब ठीक है। नाम क्या है?)
लव: — आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि गुरुचरणवन्दनायाम्।
हिन्दी अनुवाद— (आर्य (कुश) की सेवा में, मैं स्वयं को 'लव' इस नाम से सुनवाता हूँ। (कुश की ओर संकेत करके) आर्य (कुश) भी गुरुजनों की सेवा में………)
कुश: — अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
हिन्दी अनुवाद— (मैं भी 'कुश' इस नाम से स्वयं को सुनवाता हूँ।)
रामः — अहो ! उदात्तरम्यः समुदाचारः ।
किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?
हिन्दी अनुवाद— (अहो! अत्यधिक मनोहर शिष्टाचार है। आपके गुरु का क्या नाम है?)
लवः — ननु भगवान् वाल्मीकिः।
हिन्दी अनुवाद— (निःसन्देह भगवान् वाल्मीकि।)
रामः — केन सम्बन्धेन?
हिन्दी अनुवाद— (किस सम्बन्ध से।)
लवः — उपनयनोपदेशेन।
हिन्दी अनुवाद— (उपनयन (यज्ञोपवीत) की दीक्षा के कारण से।)
रामः — अहमत्र भवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
हिन्दी अनुवाद— (मैं आप दोनों के पिता को नाम से जानना चाहता हूँ।)
लवः — न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
हिन्दी अनुवाद— (मैं उनका नाम नहीं जानता। इस तपोवन में कोई भी उनका नाम व्यवहार में नहीं लाता है।)
रामः — अहो माहात्म्यम्।
हिन्दी अनुवाद— (बहुत महिमा है।)
कुशः — जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
हिन्दी अनुवाद— (मैं उनका नाम जानता हूँ।)
रामः — कथ्यताम्।
हिन्दी अनुवाद— (बताओ।)
कुशः — निरनुक्रोशो नाम······
हिन्दी अनुवाद— (दया रहित नाम······)
रामः — वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम्।
हिन्दी अनुवाद— [(विदूषक से) मित्र, (बड़ा) अद्भुत नाम है।]
विदूषकः — (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि । निरनुक्रोश इति क एवं भणति?
हिन्दी अनुवाद— [(सोचकर) इस तरह से पूछता हूँ। 'निर्दयी' ऐसा कौन कहता है?]
कुश: — अम्बा।
हिन्दी अनुवाद— (माता।)
विदूषकः — किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
हिन्दी अनुवाद— (क्या क्रोधित होकर ऐसा कहती है या स्वाभाविक रूप से।)
कुशः — यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति - निरनुक्रोशस्य पुत्रौ मा चापलम् इति।
हिन्दी अनुवाद— (यदि (कभी) हम दोनों की बचपन के कारण उत्पन्न हुई उद्दण्डता (शरारत) देखती है, तो फटकारती है- "निर्दयी के पुत्रो, चंचलता (शरारत) को मत करो" ऐसा।)
विदूषकः — एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारकौ निर्भर्त्सयतिं ।
हिन्दी अनुवाद— (यदि इनके पिता का नाम 'निर्दयी' है, तो इनकी माता को उनके द्वारा अपमानित करके घर से निकाला होगा, इस कारण (इतने कठोर) शब्द से दोनों पुत्रों को धमकाती है।)
राम: — (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम् । सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेव मन्युगर्भैरक्षरैर्निर्भर्त्सयति।
हिन्दी अनुवाद— [(अपने मन में) मेरे भी इस प्रकार के होने पर धिक्कार है। वह तपस्विनी मेरे द्वारा किए गये अपराध के कारण अपनी सन्तान को इस प्रकार के क्रोधपूर्ण वचनों से धमकाती है (होगी)।]
(सवाष्पमवलोकयति)
हिन्दी अनुवाद— (आँखों में आँसू लेकर देखते हैं)
रामः — अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयोर्नामतो वेदितुमिच्छामि । न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः?
हिन्दी अनुवाद— (यह (सीता का वन में रहना रूपी) प्रवास बहुत लम्बा और कठोर है। (विदूषक को देखकर ओट में) उत्कण्ठा से भरा इन दोनों की माता को नाम से जानना चाहता हूँ और स्त्री के विषय में बात करना ठीक नहीं है विशेष रूप से तपोवन की। तो यहाँ क्या उपाय हो सकता है ?)
विदूषकः — (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी?
हिन्दी अनुवाद— [(ओट में) मैं फिर पूछता हूँ। (सबके सामने) तुम दोनों की माता क्या नाम वाली हैं ?]
लवः — तस्याः द्वे नामनी।
हिन्दी अनुवाद— (उनके दो नाम हैं।)
विदूषकः — कथमिव?
हिन्दी अनुवाद— (कैसे?)
लवः — तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।
हिन्दी अनुवाद— (तपोवनवासी ‘देवी' इस नाम से पुकारते हैं (और) भगवान् वाल्मीकि 'वधू' इस नाम से।)
राम: — अपि च इतस्तावद् वयस्य!
मुहूर्त्तमात्रम्।
हिन्दी अनुवाद— (मित्र ! जरा क्षण भर के लिए इधर आओ।)
विदूषकः — (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
हिन्दी अनुवाद— ((पास जाकर) आप आज्ञा दीजिए।)
राम: — अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः?
हिन्दी अनुवाद— (इन दोनों कुमारों और हमारे परिवार की कहानी तो बिलकुल समान है।)
(नेपथ्ये)
हिन्दी अनुवाद— (पर्दे के पीछे)
इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते ?
हिन्दी अनुवाद— (इतना समय हो गया है रामायण गाने का कार्य क्यों नहीं किया जाता है?)
उभौ — राजन् ! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
हिन्दी अनुवाद— (महाराज ! आचार्य जी का दूत हमें जल्दी करने के लिए कहता है।)
राम: — मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि—
हिन्दी अनुवाद— (मेरे द्वारा भी मुनि (वाल्मीकि) के आदेश का सम्मान करना ही चाहिए। जैसा कि—)
भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः॥
हिन्दी अनुवाद— (आप दोनों (कुश और लव) इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि (वाल्मीकि) इस रचना के कवि हैं, धरती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से सम्बद्ध है इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।)
वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि । सन्निधीयन्तां सभासदः, प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि।
हिन्दी अनुवाद— (मित्र (विदूषक) ! मनुष्यों में यह सरस्वती के अवतार (वाल्मीकि) अद्भुत हैं, तो मैं (भी) सामान्य मित्र जनों के समान सुनना चाहता हूँ। सभी सभासदों को एकत्र कीजिए, मेरे पास लक्ष्मण को भेज दीजिए, मैं भी इन दोनों (लव और कुश) के देर तक आसन (गोद) में बैठाने से उत्पन्न थकान को टहलकर दूर करता हूँ।
(इस प्रकार सभी निकल जाते हैं।))

शब्दार्थाः

पितामहः = पिता के पिता।
सहस्त्रदीधितिः = सूर्य।
कण्ठाश्लेषस्य = गले लगाने का।
परिष्वज्य = आलिङ्गन करके।
विचिन्त्य = विचार करके।
अध्यासितुम् = बैठने के लिए।
सव्यवधानम् = रुकावट सहित।
अध्यास्यताम् = बैठिये।
अलमतिदाक्षिण्येन = अत्यधिक दक्षता, अधिक कुशलता नहीं करें।
अङ्कम् = गोद में।
हिमकर: = चन्द्रमा।
पशुपतिः = शिव।
केतकछदत्वम् = केतकी (केवड़े) के पुष्प से बनी मस्तक की शोभा।
स्वगतम् = मन ही मन‌।
समानाभिजनौ = एक कुल में पैदा होने वाले।
संवृत्तौ = हो गये।
प्रतिवचनम् = उत्तर।
सोदय = सहोदर/सगे भाई।
शरीरसन्निवेशः = शरीर की बनावट।
उदात्तरम्यः = अत्यधिक मनोहर।
समुदाचारः = शिष्टाचार।
उपनयनोपदेशेन = उपनयन की दीक्षा के कारण।
नामधेयम् = नाम।
निरनुक्रोशः = दया रहित।
वयस्य = मित्र।
भणति = कहता है।
अम्बा = माता।
उत = अथवा।
प्रकृतिस्था = स्वाभाविक रूप से।
अधिक्षिपति = फटकारती है।
चापलम् = चंचलता को।
अवमानिता = अपमानित।
दारकौ = दो पुत्रों को।
निर्भर्त्सयति = धमकाती है।
निःश्वस्य = दीर्घ श्वास लेकर।
स्वापत्यम् = अपनी सन्तान को।

अभ्यासः

१. एकपदेन उत्तरं लिखत—
(एक शब्द में उत्तर लिखिए।)
(क) कुशलवौ कम् उपसृत्य प्रणमतः?
(कुश और लव किसके पास पहुँचकर प्रणाम करते हैं?)
उत्तर — रामम्। (राम के)।
(ख) तपोवनवासिनः कुशस्य मातरं केन नाम्ना आह्वयन्ति? (तपोवनवासी कुश की माता को किस नाम से बुलाते हैं?)
उत्तर— देवीति। ('देवी' इस)।
(ग) वयोऽनुरोधात् कः लालनीयः भवति?
(छोटी उम्र के कारण कौन लालनीय होता है?)
उत्तर — शिशुः। (शिशु)।
(घ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः लवकुशयोः गुरुः?
(किस सम्बन्ध से वाल्मीकि लवकुश के गुरु थे?)
उत्तर— उपनयनोपदेशेन।
(यज्ञोपवीत की दीक्षा के कारण से)।
(ङ) कुत्र लवकुशयोः पितुः नाम न व्यवह्रियते?
(कहाँ लव कुश के पिता का नाम नहीं लिया जाता है?)
उत्तर— तपोवने। (तपोवन में)।

२. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत—
(नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए।)
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेपस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
(राम के लिए कुश-लव को गले लगाने का स्पर्श कैसा था?)
उत्तर — रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
(राम के लिए कुश-लव को गले लगाने का स्पर्श हृदय को छूने वाला था।)
(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
(राम लव कुश को कहाँ बैठने के लिए कहते हैं?)
उत्तर — राम लवकुशी सिंहासने उपवेशयितुम् कथयति।
(राम लव कुश को सिंहासन पर बैठने के लिए कहते हैं।)
(ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते?
(बालभाव के कारण चन्द्रमा कहाँ शोभित होता है?)
उत्तर — बालभावात् हिमकरः पशुपति मस्तक - केतकच्छदत्वम् विराजते। (बालभाव के कारण चन्द्रमा शङ्कर जी के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी के पुष्पों से निर्मित आभूषण की भाँति सुशोभित होता है।
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता कः?
(लव-कुश के कुल के जनक कौन हैं?)
उत्तर — कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता भगवान् सहस्रदीधितिः।
(लव-कुश के कुल के जनक भगवान् सूर्य हैं।)
(ङ) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति?
(कुश लव की माता को वाल्मीकि किस नाम से पुकारते हैं?)
उत्तर — कुशलवयोः मातरं वाल्मीकि : वधूरिति नाम्ना आह्वयति।
(कुश लव की माता को वाल्मीकि वधू इस नाम से पुकारते हैं।)

३. रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत—
(रेखांकित शब्दों में विभक्ति और उसके कारण का उदाहरण के अनुसार निर्देश कीजिए।)
विभक्तिःतत्कारणम्
यथा― राजन् ! अलम् अतिदाक्षिण्येन। — तृतीया — 'अलम्' योगे
उत्तर—
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति। — द्वितीया — 'उप + विश्' योगे
(ख) धिङ् माम् एवं भूतम्। — द्वितीया — 'धिक्' योगे
(ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्। — द्वितीया —‌ 'अधि + आस्’ योगे
(घ) अलम् अतिविस्तरेण। — द्वितीया — 'अलम्' योगे
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च। — द्वितीया — 'उप + सृ' योगे

४. यथानिर्देशम् उत्तरत—
(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।)
(क) 'जानाम्यहं तस्य नामधेयम्' अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तर — अहम्।
(ख) 'किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था' — अस्मात् वाक्यात् 'हर्षिता' इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तर — कुपिता।
(ग) विदूषकः (उपसृत्य) 'आज्ञापयतु भवान् !' अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तर — रामाय।
(घ) 'तस्मादङ्क — व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम्' — अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तर — अध्यास्याताम्।
(ङ) 'वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्' — अत्र 'आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तर— वयसः।

५. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति—
(नीचे लिखे वाक्य कौन किससे कहता है?)
कःकम्
उत्तर— (क) सव्यवधानं न चारित्र्यलोपाय। (रामः — लवकुशौ)
(ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था? (विदूषकः — कुशम्)
(ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्। (कुशः — रामम्)
(घ) तस्याः द्वे नाम्नी। (लवः — विदूषकम्)
(ङ) वयस्य! अपूर्वं खलु नामधेयम्। (रामः — विदूषकम्)

६. मञ्जूषात: पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत—
(मंजूषा से दो पर्याय चुनकर शब्दों के सामने लिखिए—)
शिवः
शिष्टाचार:
शशि :
चन्द्रशेखरः
सुतः
इदानीम्
अधुना
पुत्र:
सूर्य:
सदाचारः
निशाकरः
भानु
उत्तर— (क) हिमकर: — शशि: — निशाकरः
(ख) सम्प्रति — इदानीम् — अघुना
(ग) समुदाचारः — शिष्टाचारः — सदाचारः
(घ) पशुपति: — शिवः — चन्द्रशेखरः
(ङ) तनयः — सुतः — पुत्रः
(च) सहस्रदीधिति: — सूर्यः — भानुः

(अ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत—
(विशेषण और विशेष्य शब्दों को मिलाइए।)
यथा— विशेषण पदानि — विशेष्य पदानि
उत्तर—
(1) उदात्तरम्यः — (क) समुदाचारः
(2) अतिदीर्घः — (घ) प्रवासः
(3) समरूपः — (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः
(4) हृदयग्राही — (ख) स्पर्शः
(5) कुमारयोः — (ग) कुशलवयोः

७. (क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत—
(नीचे लिखे शब्दों में सन्धि कीजिए।)
(क) द्वयोः + अपि — द्वयोरपि।
(ख) द्वौ + अपि — द्वावपि।
(ग) कः अत्र — कोऽत्र।
(घ) अनभिज्ञः + अहम् — अनभिज्ञोऽहम्।
(ङ) इति + आत्मानम् — इत्यात्मानम्।

(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत—
(नीचे लिखे शब्दों में विच्छेद कीजिए।)
(क) अहमप्येतयोः — अहम् + अपि + एतयोः।
(ख) वयोऽनुरोधात् — वय: + अनुरोधात्।
(ग) समानाभिजनौ — समान + अभिजनौ।
(घ) खल्वेतत् — खलु + एतत्।

योग्यताविस्तारः

यह पाठ संस्कृतवाङ्मय के प्रसिद्ध नाटक 'कुन्दमाला' के पंचम अङ्क से सम्पादित कर लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग हैं। इस नाटकांश में राम कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूड राम और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बिठा लेते हैं और आनन्दित कुश होते हैं। पाठ में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया है। 

नाट्य प्रसङ्गः

कुन्दमाला के लेखक दिङ्नाग ने प्रस्तुत नाटक में रामकथा के करुण अवसाद भरे उत्तरार्ध की नाटकीय सम्भावनाओं को मौलिकता से साकार किया है। इसी कथानक पर प्रसिद्ध नाटककार भवभूति का उत्तररामचरित भी आश्रित है। कुन्दमाला के छहों अङ्कों का दृश्यविधान वाल्मीकि - तपोवन के परिसर में ही केन्द्रित है। प्रस्तुत नाटकांश पञ्चम अङ्क से सम्पादित कर सङ्कलित किया गया है। लव और कुश से मिलने पर राम के हृदय में उनसे आलिंगन की लालसा होती है। उनके स्पर्शसुख से अभिभूत हो राम, उन्हें अपने सिंहासन पर अपनी गोद में बिठाकर लाड़ करते हैं। इसी भाव की पुष्टि में नाटक में यह श्लोक उद्धत हैं―

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामधि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति मस्तक-केतकच्छदत्यम्॥
हिन्दी अनुवाद — तात्पर्य यह है कि शिशु को उम्र के अनुसार सबसे बड़े गुणों से पोषित किया जाना चाहिए।  यहां तक ​​कि हिम तेंदुआ भी, एक बच्चे के रूप में, अपने सिर और केतका को ढकने के लिए जानवरों के स्वामी के पास जाता है।

शिशुस्नेहसमभावश्लोका:

अनेन कस्यापि कुलाङकुरेण स्पृष्टस्य गात्रेषु सुख ममैवम्।
कां निर्वृतिं चेतसि तस्य कुर्याद् यस्यायमङ्कात् कृतिनः प्ररूढः॥
(कालिदास)
हिन्दी अनुवाद — मैं किसी भी परिवार के इस अंकुर द्वारा छुए गए अंगों में बहुत सहज महसूस करता हूं।
 जिसकी गोद बड़ी हो गई हो, उसके मन को क्या संतुष्टि मिलेगी।

अन्तःकरणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेहसंश्रयात्। आनन्दग्रन्थिरेकोऽयमपत्यमिति पठ्यते॥
(भवभूतिः)
हिन्दी अनुवाद — आंतरिक सार पर युगल की स्नेहपूर्ण निर्भरता से। आनंद की यह एक गांठ बचपन में पढ़ी जाती है।

धूलीधूसरतनयः क्रीडाराज्ये स्वके च रममाणाः।
कृतमुखवाद्यविकाराः क्रीडन्ति सुनिर्भर बालाः॥
(अज्ञातकविः)
हिन्दी अनुवाद — धूल और धूल के पुत्र खेल साम्राज्य में आनंद ले रहे हैं। बच्चे अपने चेहरों और संगीत वाद्ययंत्रों के साथ खेलते थे।

अनियतरुदितस्मितं विराजत्कतिपयकोमलदन्तकुड्मलाग्रम्। बदनकमलकं शिशोः स्मरामि स्खलदसमज्जसमज्जल्पितं ते॥
(अज्ञातकविः)
हिन्दी अनुवाद — कुछ कोमल दाँतों की नोकें अनियमित रोती हुई मुस्कान के साथ चमक रही थीं  मुझे याद है कि बच्चे का कमल-सा चेहरा फिसलकर आपकी बातों में डूब गया था।

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)

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