चतुर्थः पाठ: "चाणक्यवचनानि"
पाठ का हिन्दी अनुवाद
चाणक्यः चन्द्रगुप्तमौर्यस्य गुरुः आसीत्। सः महान् राजनीतिज्ञ:, अर्थशास्त्रज्ञश्च आसीत्। "चाणक्यनीतिः कौटिलीयमर्थशास्त्रम्" इति द्वौ ग्रन्थौ प्रसिद्धौ स्तः। चाणक्यः नन्दवंशस्य उन्मूलनं कृत्वा चन्द्रगुप्तमौर्य सिंहासने स्थापितवान्। तस्य वचनानि अत्र प्रस्तूयन्ते―
हिन्दी अनुवाद—
चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु थे। वे राजनीति के एक महान ज्ञाता और अर्थशास्त्र के जानकार थे। "चाणक्यनीति तथा कौटिलीय अर्थशास्त्र" इनके दो प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। चाणक्य ने नन्दवंश का विनाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को सिंहासन पर बैठाया। उनके वचनों (कथनों) को यहाँ प्रस्तुत किया जाता है—
माता शत्रुः पिता वैरी, येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये, हंसमध्ये बको यथा॥१॥
हिन्दी अनुवाद—
जिन माता और पिता ने बालकों को शिक्षा नहीं दिलवायी, वे (दोनों माता और पिता) शत्रु (बैरी) हुआ करते हैं। (अशिक्षित) बालक सभा में उसी तरह शोभा (सम्मान) नहीं पाते जिस तरह हंसों के मध्य बगुला शोभित नहीं होता।
अधमाः धनमिच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति, मानो हि महतां धनम् ॥२॥
हिन्दी अनुवाद—
नीच (निम्न श्रेणी का) व्यक्ति धन-सम्पदा की इच्छा किया करते हैं। मध्यम श्रेणी के व्यक्ति धन-सम्पदा और मान-सम्मान दोनों को ही चाहते हैं। उत्तम (उच्च) श्रेणी के व्यक्ति मात्र मान-सम्मान ही चाहते हैं, क्योंकि सम्मान ही महापुरुषों के लिए धन-धान्य हुआ करता है।
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥३॥
हिन्दी अनुवाद—
जल की बूँदों को लगातार गिराते रहने से घट (घड़ा) भर जाता है। इसी तरह सभी विद्याओं, धर्म तथा धन के विषय में यही होता है अर्थात् विद्या, धर्म तथा धन का संचय थोड़ा-थोड़ा करके भी बहुत बढ़ (अधिक हो) जाता है।
सुखार्थी चेत्त्यजेत् विद्यां, विद्यार्थी चेत्त्वजेत्सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतस्सुखम्॥४॥
हिन्दी अनुवाद—
सुख चाहने वाले को विद्या का त्याग कर देना चाहिए तथा विद्यार्थी को अर्थात विद्या की इच्छा करने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए। सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ और विद्यार्थी को सुख कहाँ? प्राप्त होता है अर्थात् सुख की इच्छा करने वाले व्यक्ति को विद्या नहीं मिल सकती और विद्या चाहने वाले व्यक्ति को सुख नहीं मिल सकता है।
तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायाः विषं मुखे।
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे, सर्वाङ्गे दुर्जनस्य तु॥५॥
हिन्दी अनुवाद—
तक्षक प्रजाति के सर्प के दाँत में विष होता है। मक्खी के मुख में विष होता है बिच्छू की पूँछ में विष होता है। परन्तु दुष्ट व्यक्ति के तो सम्पूर्ण शरीर में ही विष होता है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति सर्प, मक्खी और बिच्छू से भी ज्यादा विषैला (हानिकारक) होता है।
कामधेनुगुणा विद्या सर्वदाफलदायिनी।
प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तधनं स्मृतम्॥६॥
हिन्दी अनुवाद—
सभी फलों को प्रदान करने वाली विद्या में कामधेनु (इच्छा अनुरूप फल देने वाली) के समान गुण होते हैं। परेदश में रहने पर विद्या माता के समान होती है। इस तरह विद्या को छिपा हुआ धन कहा जाता है।
एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना।
वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥७॥
हिन्दी अनुवाद—
एक ही श्रेष्ठ वृक्ष पर फूलों के खिल जाने पर उनकी अच्छी गन्ध से सम्पूर्ण वन को सुगन्धित उसी प्रकार हो जाता है, जिस प्रकार सुपुत्र के द्वारा वंश को सुगन्धित कर दिया जाता है। (श्रेष्ठ बना दिया जाता है)।
शब्दार्थाः
बकः = बगुला।
महताम् = श्रेष्ठ लोगों का।
अधमाः = निम्न कोटि के।
तक्षकः = सर्प विशेष।
मक्षिका = मक्खी।
वृश्चिक: = बिच्छू।
पुच्छे = पूँछ में।
प्रवासे = यात्रा में या परदेश में रहने पर।
वासितम् = सुगन्धित।
कामधेनु गुणा = इच्छा पूरी करने वाली गाय के समान गुण वाली।
मातृसदृशी = माता के समान।
अभ्यासः
१. एकपदेन उत्तरं लिखत―
(एक शब्द में उत्तर लिखो.)
(क) अपाठितः बालः कुत्र न शोभते?
(अशिक्षित बालक कहाँ शोभा नहीं देता?)
उत्तरम्— सभामध्ये।
(ख) महतां धनं किम्?
(श्रेष्ठ लोगों का धन क्या है?)
उत्तरम्— मानः।
(ग) तक्षकस्य विषं कुत्र वर्तते?
(तक्षक प्रजाति के सर्प में विष कहाँ होता है?)
उत्तरम्— दन्ते।
(घ) प्रवासे विद्या कीदृशी भवति?
(परदेश में विद्या किसके समान होती है?)
उत्तरम्— मातृसदृशी।
(ङ) वृश्चिकस्य विषं कुत्र वर्तते?
(बिच्छू में विष कहाँ होता है?)
उत्तरम्— पुच्छे।
(च) मक्षिकायाः विषं कुत्र वर्तते?
(मक्खी में विष कहाँ होता है?)
उत्तरम्— मुखे।
२. एकवाक्येन उत्तरं लिखत―
(एक वाक्य में उत्तर लिखो।)
(क) के मानम् इच्छन्ति?
(कौन सम्मान चाहते हैं?)
उत्तरम्— उत्तमजना: मानम् इच्छन्ति।
(उत्तम श्रेणी के व्यक्ति सम्मान चाहते हैं।)
(ख) सुखार्थी किं न प्राप्नोति?
(सुख चाहने वाले व्यक्ति को क्या प्राप्त नहीं होता?)
उत्तरम्— सुखार्थी विद्याम् न प्राप्नोति।
(सुख चाहने वाले व्यक्ति को विद्या प्राप्त नहीं होती)
(ग) विद्यार्थी किं न प्राप्नोति?
(विद्यार्थी को क्या प्राप्त नहीं होता?)
उत्तरम्— विद्यार्थी सुखम् न प्राप्नोति।
(विद्यार्थी को सुख प्राप्त नहीं होता।)
(घ) विद्या कीदृशं धनं भवति?
(विद्या को किस प्रकार का धन कहा गया है?)
उत्तरम्— विद्यां सर्वदाफलदायिनी भवति अतः सा गुप्तधनं भवति।
(विद्या सदैव सुफल देने वाली होती है, अतः उसे गुप्त धन कहा गया है।)
(ङ) घटः कथं पूर्यते?
(घड़ा कैसे भरता है?)
उत्तरम्— जलबिन्दु निपातेन क्रमशः घटः जलेन पूर्णः भवति। (जल की बूँदें क्रमशः गिराने से घड़ा पूरा भर जाता है।)
३. कोष्ठकात् उचितानि पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत―
(कोष्ठक से उचित शब्द का चयन करके रिक्त स्थानों को भरो।)
(क) उत्तमाः मानम् इच्छन्ति। (अधमाः /उत्तमाः)
(ख) विद्यार्थिनः कुतः सुखम्। (सुखम/दुःखम्)
(ग) मक्षिकायाः मुखे विषम्। (पुच्छे/मुखे)
(घ) सुपुत्रेण कुलं यथा। (कुलं/वनम्)
(ङ) हंसमध्ये बकोः यथा। (बकोः/बालः)
४. अधोलिखितशब्दानां विलोमशब्दान् लिखत―
(अधोलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखो।)
(क) सुखार्थी ― दुःखार्थी
(ख) दुर्जन ― सज्जनः
(ग) सत्यम् ― अनृतम्
(घ) गुणः ― अवगुणः
(ङ) धर्म: ― अधर्म
(च) सुपुत्रः ― कुपुत्रः
५. समानार्थक शब्दान् लिखत―
(समानार्थक शब्दों को लिखो।)
(क) माता ― जननी
(ख) वनम् ― अरण्यम्
(ग) पुत्रः ― सुतः
(घ) धनम् ― वित्तम्
६. पदानां विभक्तिं वचनं च लिखत―
(पदों (शब्दों) की विभक्ति और वचन लिखो।)
― शब्द ― विभक्ति ― वचन
(क) माता ― प्रथमा—एकवचन
(ख) पिता ― प्रथमा—एकवचन
(ग) उत्तमाः ― प्रथमा—बहुवचन
(घ) विद्यानाम् ― षष्ठी—बहुवचन
(ङ) पुष्पितेन ― तृतीया—एकवचन
७. क्रियापदानां धातुं वचनं पुरुषं च लिखत―
(क्रिया पदों के धातु, वचन और पुरुष लिखो।)
― शब्द ―― धातु ―― वचन ―― पुरुष
(क) पूर्यन्ते ― पूर—― अन्य पुरुषः— बहुवचन
(ख) सेवये ― सेव् —― मध्यम पुरुष — बहुवचन
(ग) इच्छन्ति ― इच्छ — अन्य पुरुषः — बहुवचन
(घ) लभावहे ― लभ् — उत्तम पुरुष —― द्विवचन
८. श्लोकांशान् यथायोग्यं योजयत―
(श्लोकों के अंशों को उचित रूप से जोड़ो।)
(क) सुखार्थिनः कुतो विद्या ― विद्यार्थिनः कुतस्सुखम्।
(ख) न शोभते सभामध्ये ― हंसमध्ये बको यथा।
(ग) वृश्चिकस्य विषं पुच्छे ― दुर्जनस्य तु सर्वाङ्गे।
(घ) वासितं तद्वनं सर्वम् ― सुपुत्रेण कुलं यथा।
९. उदाहरणानुगुणम् अन्वयपूर्तिं कुरुत―
(उदाहरण के अनुसार अन्वय की पूर्ति करो।)
अधमाः धनमिच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्॥
अन्वयः ― अधमाः धनम् इच्छन्ति मध्यमाः धनं मान च इच्छन्ति, उत्तमा मानम् इच्छन्ति, महता धनं मान हि।
(१) सुखार्थी चेत् विद्यां त्यजेत्, विद्यार्थी चेत् सुखं त्यजेत् सुखार्थिनः विद्यां त्यजेत् विद्यार्थिनः सुखम् कुतः।
(२) तक्षकस्य दन्ते विषं मच्छिकायाः मुखे विषं, वृश्चिकस्य पुच्छे विषं दुर्जनस्य सर्वाङ्गे विषम्।
योग्यताविस्तारः
पुरुष: ―― एकवचनम् ― द्विवचनम् ― बहुवचनम्
प्रथमपुरुषः – लभते ――― लभेते ―― लभन्ते
मध्यमपुरुष – लभसे ――― लभेथे ―― लभध्वे
उत्तमपुरुष: –लभे ――― लभावहे ―― लभामहे
एवं रम्, वन्द, भाष, धातूनां रूपाणि लिखत्।
(इस प्रकार उन्होंने रम्, वन्द, भाषा धातुओं के रूप लिखिये।)
राज्यस्य मूलं धर्मः।
(राज्य का मूल धर्म है।)
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
infosrf