All
Text
द्वितीयः पाठः 'बुद्धिर्बलवती सदा'
पाठ परिचय
प्रस्तुतः पाठः "शुकसप्ततिः" इति कथाग्रन्थात् सम्पादनं कृत्वा संगृहीतोऽस्ति। अत्र पाठांशे स्वलघुपुत्राभ्यां सह काननमार्गेण पितृगृहं प्रति गच्छन्त्याः बुद्धिमतीतिनाम्न्याः महिलाया: मतिकौशलं प्रदर्शितं वर्तते। सा पुरतः समागतं सिंहमपि भीतिमुत्पाद्य ततः निवारयति। इयं कथा नीतिनिपुणयोः। शुकसारिकयोः संवादमाध्यमेन सद्वृत्तेः विकासार्थं प्रेरयति।
हिन्दी अनुवाद― प्रस्तुत पाठ 'शुकसप्ततिः' नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित करके संकलित किया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है जो सामने आए हुए शेर को भी डरा कर भगा देती है। यह कथा नीतिनिपुण शुक और सारिका की कथा के द्वारा सदवत्ति का विकास करने के लिए प्रेरित करती है।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-"कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।"
शब्दार्थाः―
देउलाख्यः = देउल नामक (देउल इत्यभिधः)।
राजपुत्रः = राजकुमार (राजकुमारः)।
भार्या = पत्नी (जाया)।
पुत्रद्वयोपेता = दोनों पुत्रों के साथ (द्वाभ्याम् आत्मजाभ्यां सहिता)।
पितुर्गहम् = पितृगृहं प्रति (पिता के घर)।
चलिता = प्रस्थिता (चल पड़ी)।
कानने = वने (जंगल में)।
ददर्श = अपश्यत् (देखा)।
व्याघ्रम् = (शार्दूलम् (बाघ को)।
आगच्छन्तं = आयान्तम् (आता हुआ)।
दृष्ट्वा = अवलोक्य (देखकर)।
धाष्र्यात् = धृष्टतापूर्वकम् (धृष्टता से)।
चपेटया = करप्रहारेण (थप्पड़ से)।
प्रहृत्य = प्रहारं कृत्वा (प्रहार करके, थप्पड़ मारकर)।
जगाद = उक्तवती (कहा)।
एकैकशः = एकम् एकम् (एक-एक)।
भक्षणाय = खादितुम् (खाने के लिए)।
कलहम् = विवादम् (झगड़ा)।
विभज्य = विभक्तं कृत्वा (बाँटकर, अलग-अलग करके)।
भुज्यताम् = खाद्यताम् (खाइए)।
पश्चाद् = तदनन्तरम् (इसके बाद)।
लक्ष्यते = दृश्यते (देखा जाएगा)।
हिन्दी अनुवाद― देउल नामक एक गाँव था। वहाँ राजसिंह नामक राजकुमार रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर (पीहर/मायके) की ओर जा रही थी। रास्ते में गहन जंगल में उसने एक शेर को देखा। वह शेर को आता हुआ देखकर धृष्टता से दोनों पुत्रों के थप्पड़ मारकर बोली― "क्यों एक-एक शेर को खाने के लिए झगडा कर रहे हो? यह एक ही है, इसे बाँटकर खा लेना। बाद में अन्य कोई दूसरा देखा (ढूँढ़ा) जाएगा।"
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः। निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमॉल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह― "भवान् कुतः भयात् पलायितः?"
शब्दार्थाः―
श्रुत्वा = आकर्ण्य (सुनकर)।
व्याघ्रमारी = शार्दूल-हन्त्री (बाघ को मारने वाली)।
मत्वा = निश्चित्य (मानकर)।
भयाकुलचित्तो = व्याकुलहृदयः (भय से व्याकुल मन वाला, भयभीत)।
नष्टः = पलायितः (भाग गया)।
निजबुध्या = आत्मनः प्रज्ञया (अपनी बुद्धि से)।
भामिनी = रूपवती स्त्री।
लोक = संसारे (संसार में)।
मुच्यते = त्यज्यते (मुक्त हो जाता है)।
शृगालः = जम्बुकः (सियार)।
आह = अकथयत् (कहा)।
श्रूयते = आकर्ण्यते (सुना जाता है)।
कुतः = कस्मात् (कहाँ से)।
हिन्दी अनुवाद ― यह सुनकर यह कोई बाघ को मारने वाली स्त्री है, ऐसा मानकर बाघ भयभीत होकर भाग गया।
वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से बाघ के भय से मुक्त हो गई। संसार में अन्य बुद्धिमान् भी महान् भय से मुक्त हो जाता है।
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त सियार हँसता हुआ बोला― "आप किस भय से भाग रहे हो?"
व्याघ्रः – गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
शब्दार्थाः―
गूढप्रदेशम् = गुप्तस्थाने (गुप्त प्रदेश में)।
श्रूयते = आकर्ण्यते (सुना जाता है)।
हन्तुम् = मारयितुम् (मारने के लिए)।
गृहीतकरजीवितः = हस्ते प्राणान् नीत्वा (हथेली पर प्राण लेकर)।
अग्रतः = सम्मुखात् (सामने से)।
हिन्दी अनुवाद―
बाघ– जाओ, सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में चले जाओ। क्योंकि 'बाघ को मारने वाली स्त्री' ऐसा जो शास्त्र में सुना जाता है। वह मुझे मारने ही वाली थी किन्तु प्राण हथेली पर रखकर उसके सामने से मैं शीघ्र भाग आया हूँ।
शृगालः - व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
शब्दार्थाः―
महत्कौतुकम् = अत्यधिकम् आश्चर्यकरम् (घोर आश्चर्य से)।
आवेदितम् = विज्ञापितम् (बताया है)।
मानुषादपि = मानवादपि (मनुष्य से भी)।
बिभेषि = भयाक्रान्तोऽसि (डरते हो)।
हिन्दी अनुवाद―
सियार– हे बाघ! तुमने महान् आश्चर्य की बात बतलाई है कि तुम मनुष्य से भी डरते हो?
व्याघ्रः - प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
शब्दार्थाः―
प्रत्यक्षम् = सम्मुखम् (सामने)।
सात्मपुत्रावेकैकशः = स्वात्मजौ एकैकं कृत्वा (वह अपने दोनों पुत्रों को एक-एक करके)।
अत्तुम् = खादयितुम् (खाने के लिए)।
कलहायमानौ = कलहं कुर्वन्तौ (झगड़ा करते हुए दोनों को)।
प्रहरन्ती = प्रहारं कुर्वन्तीम् (मारती हुई, प्रहार करती हुई)।
दृष्टा = अवलोकिता (देखी गई)।
हिन्दी अनुवाद―
बाघ– मेरे द्वारा अपने सामने ही उसे अपने दोनों पुत्रों को एक-एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुओं को थप्पड़ मारते हुए देखा गया है।
जम्बुकः - स्वामिन् ! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
शब्दार्थाः―
यत्रास्ते = यस्मिन् स्थाने स्थिता (जहाँ है)।
गतस्य = प्राप्तस्य (गये हुए के)।
ईक्षते = पश्यति (देखती है)।
हन्तव्यः = हननीयः (मार देना चाहिए)।
हिन्दी अनुवाद―
सियार - हे स्वामी ! जहाँ वह धूर्ता स्त्री है वहाँ जाइए। हे बाघ! तुम्हारे फिर से वहाँ गये हुए के सामने यदि वह स्त्री देख भी लेवे तो तुम मुझे मार देना।
व्याघ्रः - शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।
शब्दार्थाः―
मुक्त्वा = परित्यज्य (छोड़कर)।
वेला = समयः (समय)।
हिन्दी अनुवाद―
बाघ - हे सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे तो शर्त भी अशर्त (व्यर्थ) हो जायेगी।
जम्बुक: – यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथा कृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच―
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
शब्दार्थाः―
निजगले = स्वकण्ठे (अपने गले में)।
बद्ध्वा = संलग्नं कृत्वा (बाँधकर)।
सत्वरम् = शीघ्रम् (शीघ्र)।
काननम् = वनम् (जंगल में)।
ययौ = गतवान् (चला गया)।
आयान्तम् = आगच्छन्तम् (आते हुए को)।
आक्षिपन्ती = आक्षेपं कुर्वन्ती (आक्षेप करती हुई, झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई)।
तर्जयन्ती = प्रताडयन्ती (धमकाती हुई, डाँटती हुई)।
उवाच = अवदत् (बोली)।
पुरा = पूर्वे (पहले)।
विश्वास्य = समाश्वास्य (विश्वास दिलाकर)।
अद्य = अधुना (आज)। )
आनीय = उपाहृत्य (लाकर)।
यासि = गच्छसि (जा रहे हो)।
भयङ्करा = (भीषणा भयानकता दिखलाती हुई)।
तूर्णम् = शीघ्रम् (शीघ्र)।
धाविता = अधावत् (दौड़ी)।
गलबद्धशृगालकः = कण्ठे संलग्नशृगालयुक्तः (गले में बँधे हुए शृगाल वाला)।
हिन्दी अनुवाद―
सियार – यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो।
वह बाघ वैसा ही करके जंगल में चला गया। सियार के साथ फिर से आते हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती ने सोचा– सियार द्वारा उत्साहित किये गये बाघ से किस प्रकार मुक्त हुआ जाये? किन्तु प्रत्युत्पन्न बुद्धिवाली वह स्त्री सियार को झिड़कती हुई और अंगुली से धमकाती हुई बोली अरे, अरे धूर्त! तुमने मेरे लिए पहले तीन बाघ दिये थे। विश्वास दिलाकर भी आज एक ही बाघ लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो। ऐसा कहकर वह भयानक व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) शीघ्र ही दौड़ी। गले में बँधे हुए सियार वाला बाघ भी अचानक भाग गया।
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। अत एव उच्यते―
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा॥
शब्दार्थाः―
तन्वि = कोमलाङ्गि (कोमल अङ्गो वाली)।
हिन्दी अनुवाद―
इस प्रकार से वह बुद्धिमती स्त्री बाघ से उत्पन्न हुए भय से फिर से मुक्त हो गई। इसीलिए कहा गया है हे कोमलाङ्गी! हमेशा सभी कार्यों में बुद्धि ही बलवती होती है।
महत्वपूर्ण गदयांश
(१) अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-"कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।"
प्रसंग― प्रस्तुत गद्यांश/कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी के द्वितीय पाठ 'बुद्धिर्बलवती सदा' से उद्धृत किया गया है।
संदर्भ― मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा 'शुकसप्ततिः' नामक कथाग्रन्थ से संकलित है। इस अंश में बुद्धिमती नामक महिला के अपने दो पुत्रों के साथ अपने पिता के घर (मायके) की ओर जाने का तथा रास्ते में एक शेर को आता हुआ देखकर बुद्धिमती की चतुराई का वर्णन किया गया है।
व्याख्या― देउल नामक एक गाँव था। वहाँ राजसिंह नामक राजकुमार रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर (पीहर/मायके) की ओर जा रही थी। रास्ते में गहन जंगल में उसने एक शेर को देखा। वह शेर को आता हुआ देखकर धृष्टता से दोनों पुत्रों के थप्पड़ मारकर बोली― "क्यों एक-एक शेर को खाने के लिए झगडा कर रहे हो? यह एक ही है, इसे बाँटकर खा लेना। बाद में अन्य कोई दूसरा देखा (ढूँढ़ा) जाएगा।"
(२) यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथा कृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच―
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
प्रसंग― प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी के द्वितीय पाठ 'बुद्धिर्बलवती सदा' शीर्षक से उद्धृत है।
संदर्भ― मूलतः यह पाठ 'शुकसप्ततिः' नामक कथाग्रन्थ से संकलित है। इस अंश में धूर्त शृगाल एवं बाघ का वार्तालाप तथा बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धि-कौशल का सुन्दर व प्रेरणास्पद चित्रण किया गया है।
व्याख्या― सियार – यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो।
वह बाघ वैसा ही करके जंगल में चला गया। सियार के साथ फिर से आते हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती ने सोचा– सियार द्वारा उत्साहित किये गये बाघ से किस प्रकार मुक्त हुआ जाये? किन्तु प्रत्युत्पन्न बुद्धिवाली वह स्त्री सियार को झिड़कती हुई और अंगुली से धमकाती हुई बोली अरे, अरे धूर्त! तुमने मेरे लिए पहले तीन बाघ दिये थे। विश्वास दिलाकर भी आज एक ही बाघ लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो। ऐसा कहकर वह भयानक व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) शीघ्र ही दौड़ी। गले में बँधे हुए सियार वाला बाघ भी अचानक भाग गया।
अभ्यासः
१. एकपदेन उत्तरं लिखत―
(उत्तर एक वाक्य में लिखिए।)
(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्रं ददर्श?
(चतुर महिला ने बाघ को कहाँ देखा?)
उत्तरम्― गहनकानने।
(ख) भामिनी कया विमुक्ता?
(भामिनी किससे मुक्त होती है?)
उत्तरम्― निजबुद्ध्या।
(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती?
(सभी चीजों में हमेशा मजबूत कौन है?)
उत्तरम्― बुद्धिः।
(घ) व्याघ्रः कस्मात् बिभेति?
(बाघ क्यों डरता है?)
उत्तरम्― मानुषात्।
(ङ) प्रत्युत्पन्नमतिः बुद्धिमती किम् आक्षिपन्ती उवाच?
(स्वस्थ मन की बुद्धिमान महिला ने क्या कहा?)
उत्तरम्― जम्बुकम्।
२. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए।)
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता?
(बुद्धिमती किसके साथ पिता के घर की ओर चल दी?)
उत्तरम्– बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल दी।)
(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः?
(बाघ क्या सोचकर भाग गया?)
उत्तरम्― व्याघ्रमारी काचिदियमिति विचार्य व्याघ्रः पलायितः।
('यह कोई बाघ को मारने वाली है'― ऐसा सोचकर बाघ भाग गया।)
(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते?
(संसार में महान् भय से कौन मुक्त हो जाता है?)
उत्तरम्― लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।
(संसार में महान् भय से बुद्धिमान् मुक्त हो जाता है।)
(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति?
(गीदड़ क्या कहकर बाघ का उपहास करता है?)
उत्तरम्― "त्वम् मानुषादपि विभेषि?" इति वदन् जम्बुक: व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
("तुम मनुष्य से भी डरते हो"-यह कहकर गीदड़ बाघ का उपहास करता है।)
(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती?
(बुद्धिमती ने सियार से क्या कहा?)
उत्तरम्― "रे धूर्त ! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम् विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना।" इति बुद्धिमती शृगालम् उक्तवती।
('अरे धूर्त ! तुमने मुझे पहले तीन बाघ दिये थे। विश्वास दिलाकर अब एक (बाघ) ही लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो'― ऐसा बुद्धिमती ने सियार से कहा।)
३. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत ―
(सकल पद के आधार पर प्रश्नों का निर्माण करें।)
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
प्रश्नम्― तत्र किम नाम राजपत्रः वसति स्म?
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती।
प्रश्नम्― बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
प्रश्नम्― कम् दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्?
(घ) त्वम् मानुषात् विभेषि।
प्रश्नम्― त्वम् कस्मात् विभेषि?
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
प्रश्नम्― पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम्?
४. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत―
(नीचे दिए गए वाक्यों को घटनाओं के क्रम में जोड़ें।)
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्र दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(छ) 'त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं' प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तरम्―
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(ख) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
(घ) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ङ) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(च) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(छ) 'त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं' प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
५. सन्धि/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत―
(संधि करें या संधि विच्छेद करें।)
(क) पितुर्गृहम्― .......... + ..........
(ख) एकैकः― .......... + .........
(ग) ............ - अन्यः + अपि
(घ) ............. - इति + उक्त्वा
(ङ) ............. - यत्र + आस्ते
उत्तरम्―
(क) पितुहम् ― पितुः + गृहम्
(ख) एकैकः ― एक + एकः
(ग) अन्योऽपि ― अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा ― इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते ― यत्र + आस्ते
६. अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत्―
(निम्नलिखित शब्दों को कोष्ठक से चुनकर उनके अर्थ लिखिए।)
(क) ददर्श - (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद - (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ - (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् - (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते - (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते - (पश्यति, इच्छति)
उत्तरम्―
(क) दृष्टवान्
(ख) अकथयत्
(ग) गतवान्
(घ) खादितुम्
(ङ) मुक्तो भवति
(च) पश्यति
७. (अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत्―
(पाठ में से चयन कर समानार्थी शब्द लिखें।)
(क) वनम् - --------
(ख) शृगालः - ------
(ग) शीघ्रम् - -------
(घ) पत्नी - --------
(ङ) गच्छसि - ------
उत्तरम्―
(क) वनम् - काननम्
(ख) शृगालः - जम्बुक:
(ग) शीघ्रम् - तूर्णम्/सत्वरम्
(घ) पत्नी - भार्या
(ङ) गच्छसि - यासि
(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत्―
(पाठ में से चयन कर विपरीतार्थक लिखें।।)
(क) प्रथमः - --------
(ख) उक्त्वा - --------
(ग) अधुना - ---------
(घ) अवेला - ---------
(ङ) बुद्धिहीना - -------
उत्तरम्―
(क) प्रथमः - द्वितीयः
(ख) उक्त्वा - बद्ध्वा
(ग) अधुना - तदा
(घ) अवेला - वेला
(ङ) बुद्धिहीना - बुद्धिमती
योग्यताविस्तारः
यह पाठ शुकसप्ततिः नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है, जो सामने आए हुए शेर को डराकर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।
भाषिकविस्तारः
ददर्श - दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
विभेषि - 'भी' धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
प्रहरन्ती - प्र + ह धातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग।
गम्यताम् - गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
ययौ - 'या' धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
यासि - गच्छसि।
समासः
गलबद्धशृगालकः - गले बद्धः शृगालः यस्य सः।
प्रत्युत्पन्नमतिः - प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
जम्बुककृतोत्साहात् - जम्बुकेन कृत:
उत्साहः - जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्।
पुत्रद्वयोपेता - पुत्रद्वयेन उपेता।
भयाकुलचित्तः - भयेन आकुलः चित्तम् यस्य सः।
व्याघ्रमारी - व्याघ्रं मारयति इति।
गृहीतकरजीवितः - गृहीतं करे जीवितं येन सः।
भयङ्करा - भयं करोति या इति।
ग्रन्थ- परिचय
शुकसप्ततिः के लेखक और काल के विषय में यद्यपि भ्रान्ति बनी हुई है. तथापि इनका काल 1000 ई. से 1400 ई. के मध्य माना जाता है। हेमचन्द्र ने (1088-1172) में शुकसप्ततिः का उल्लेख किया है। चौदहवीं शताब्दी में इसका फारसी भाषा में 'तृतिनामह' नाम से अनुवाद हुआ था।
शुकसप्ततिः की रचनाशैली ढाँचा अत्यन्त सरल और मनोरंजक है। हरिदत्त नामक सेठ का मदनविनोद नामक एक पुत्र था। वह विषयासक्त और कुमार्गगामी था। सेठ को दुःखी देखकर उसके मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण ने अपने घर से नीतिनिपुण शुक और सारिका लेकर उसके घर जाकर कहा- इस सपत्नीक शुक का तुम पुत्र की भाँति पालन करो। इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुख दूर होगा। हरिदत्त ने मदनविनोद को वह तोता दे दिया। तोते की कहानियों ने मदनविनोद का हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अपने व्यवसाय में लग गया।
व्यापार प्रसंग में जब वह देशान्तर गया तब शुक अपनी मनोरंजक कहानियों से उसकी पत्नी का तब तक विनोद करता रहा जब तक उसका पति वापस नहीं आ गया। संक्षेप में शुकसप्ततिः अत्यधिक मनोरंजक कथाओं का संग्रह है।
हन् (मारना) धातोः रूपम्।
लट्लकारः
पुरूष ―― एकवचनम् ― द्विवचनम् ― बहुवचनम्
प्रथमपुरूषः हन्ति ――― हतः ――― घ्नन्ति
मध्यमपुरूषः हन्सि ――― हथः ―― हथ
उत्तमपुरूषः हन्मि ――― हन्वः ―― हन्मः
लृट्लकारः
पुरूष ―― एकवचनम् ― द्विवचनम् ― बहुवचनम्
प्रथमपुरूषः हनिष्यति ―― हनिष्यतः ― हनिष्यन्ति
मध्यमपुरूषः हनिष्यसि ―― हनिष्यथः ― हनिष्यथ
उत्तमपुरूषः हनिष्यामि ―― हनिष्यावः ― हनिष्यामः
लङ्गलकारः
पुरूष ―― एकवचनम् ― द्विवचनम् ― बहुवचनम्
प्रथमपुरूषः अहन् ――― अहताम् ―― अघ्नन्
मध्यमपुरूषः अहः ――― अहतम् ―― अहत
उत्तमपुरूषः अहनम् ―― अहन्व ――― अहन्म
लोटलकारः
पुरूष ―― एकवचनम् ― द्विवचनम् ― बहुवचनम्
प्रथमपुरूषः हन्तु ――― हताम् ―― घ्नन्तु
मध्यमपुरूषः जहि ―― हतम् ――― हत
उत्तमपुरूषः हनानि ―― हनाव ――― हनाम
विधिलिङ्लकारः
पुरूष ―― एकवचनम् ― द्विवचनम् ― बहुवचनम्
प्रथमपुरूषः हन्यात् ――― हन्याताम् ―― हन्युः
मध्यमपुरूषः हन्याः ――― हन्यातम् ――― हन्यात
उत्तमपुरूषः हन्याम् ――― हन्याव ――― हन्याम
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
infosrf