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वर्णों की उत्पत्ति संस्कृत छंद रचना पाठ-1 'डाल-डाल पर, ताल-ताल पर' संस्कृत स्वर वर्ण (प्लुत वर्ण) संस्कृत व्यञ्जन वर्ण ऋ और ऌ का उच्चारण संस्कृत वदतु (संस्कृत बोलिए) रिस्ते-नातों के संस्कृत नाम संस्कृत में समय ज्ञान संस्कृत में शुभकामनाएँ स्तुति श्लोकाः (कक्षा-6) प्रथमः पाठः- शब्दपरिचयः (6th संस्कृत) वन्दना (संस्कृत कक्षा 7) हिन्दी अर्थ प्रथमः पाठः चत्वारि धामानि अनुवाद अभ्यास वन्दना शब्दार्थ व भावार्थ (कक्षा 8 संस्कृत) प्रथमः पाठः लोकहितम मम करणीयम् मङ्गलम् प्रथमः पाठः भारतीवसन्तगीतिः द्वितीयः पाठः कर्तृक्रियासम्बन्धः द्वितीयः पाठः कालबोधः द्वितीयः पाठः कालज्ञो वराहमिहिरः मङ्गलम् प्रथमः पाठः शुचिपर्यावरणम् द्वितीयः पाठः 'बुद्धिर्बलवती सदा' तृतीयः पाठः सर्वनामशब्दाः (भाग- 1) तृतीयः पाठः सर्वनामशब्दाः (भाग- 2) तृतीयः पाठ: बलाद् बुद्धिर्विशिष्यते चतुर्थः पाठ: चाणक्यवचनानि चतुर्थः पाठ: सङ्ख्याबोधः पंचम: पाठः रक्षाबंधनम् द्वितीयः पाठः स्वर्णकाकः तृतीयः पाठः शिशुलालनम् तृतीयः पाठः गोदोहदम् (भाग -१) तृतीयः पाठः 'गोदोहनम्' (भाग - २) तृतीयः पाठः गणतन्त्रदिवसः चतुर्थः पाठः नीतिश्लोकाः वन्दना (कक्षा 3 संस्कृत) वन्दना (कक्षा 4 संस्कृत) वन्दना (कक्षा 5 संस्कृत) पञ्चमः पाठः अहम् ओरछा अस्मि चतुर्थः पाठः कल्पतरुः (9th संस्कृत) पञ्चमः पाठः 'सूक्तिमौक्तिकम्' (9th संस्कृत) 'पुष्पाणां नामानि' (कक्षा 3) संस्कृत खण्ड अभ्यास कक्षा 4 संस्कृत – प्रथमः खण्डः वचनपरिचयः फलानां नामानि कक्षा 3 (संस्कृत खण्ड) अभ्यास प्रथम खण्डः चित्रकथा (कक्षा 5)










प्रथमः पाठः शुचिपर्यावरणम्


Text ID: 48
7764

पाठ-परिचयः ― निरन्तर बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण से आज सम्पूर्ण विश्व पीड़ित है। पृथ्वी, जल, वायु, आकाश एवं तेज सभी तो प्रदूषित हो गए हैं। मानव मन को शान्ति कहाँ मिले। विश्वव्यापी इसी समस्या से अनुप्रेरित होकर आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा ने यह कविता लिखी है। "शुचिपर्यावरणम्" उनके 'लसल्लतिका' गीत-संग्रह में संकलित है।

कवि परिचयः ― प्रो. हरिदत्त शर्मा इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में संस्कृत के आचार्य रहे हैं। इनके कई संस्कृत काव्य प्रकाशित हो चुके हैं। जैसे- गीतकंदलिका, त्रिपथगा, उत्कलिका, बालगीताली, आक्रन्दनम्, लसल्लतिका इत्यादि। इनकी रचनाओं में समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश तथा स्वस्थ वातावरण के प्रति दिशानिर्देश के भाव प्राप्त होते हैं।

कविता का हिन्दी अनुवाद

दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्। शुचि-पर्यावरणम्॥
मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम्॥
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्। शुचि .. ॥१॥

शब्दार्थाः ―
दुर्वहम् = दुष्करम् (कठिन, दूभर)
जीवितम् = जीवनम् (जीवन)
अनिशम् = अहर्निशम् (दिन-रात)
कालायसचक्रम् = लौहचक्रम् (लोहे का चक्र)
शोषयत् = शुष्कीकुर्वत् (सुखाते हुए)
तनूः = शरीराणि (शरीर)
पेषयद् ― पिष्टीकुर्वत् (पीसते हुए)
वक्रम् = कुटिलम् (टेढ़ा)
दुर्दान्तैः = भयङ्करैः (भयानक (से))
दशनैः = दन्तैः (दाँतों से)
अमुना = अनेन (इससे)
जनग्रसनम् = जनभक्षणम् (मानव विनाश)

हिन्दी अनुवाद ― इस संसार में जीवन दूभर हो गया है, अत: प्रकृति का शुद्ध (स्वच्छ) पर्यावरण ही एकमात्र सहारा है, अर्थात् शुद्ध पर्यावरण के आश्रय में ही जाना चाहिए। यह पर्यावरण लोहे का पहिया (यन्त्रों का जाल) दिन-रात महानगरों में चलता हुआ, मन का शोषण करता हुआ, शरीर को पीसता हुआ हमेशा टेढ़ा-मेढ़ा (वक्रगति से) घूमता है। इसके विकराल दाँतों द्वारा मानव का विनाश ही होगा। अतः शुद्ध पर्यावरण के आश्रय में ही जाना चाहिए।

कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला सन्धावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः, कठिनं संसरणम्। शुचि .. ॥२॥

शब्दार्थाः ―
कज्जलमलिनम् = कज्जलम् इव मलिनम् [काजल-सा मलिन (काला)]
धूमः = अग्निवाहः (धुआँ)
मुञ्चति = त्यजति (छोड़ता है)
शतशकटीयानम् = शकटीयानानां शतम् (सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ)
वाष्पयानमाला = वाष्पयानानां पंक्ति: (रेलगाड़ी की पंक्ति)
वितरन्ती = ददती/वितरणं कुर्वाणा (देती हुई)
ध्वानम् = ध्वनिम् (कोलाहल)
संसरणम् = सञ्चलनम् (चलना)

हिन्दी अनुवाद ― सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल-सा मलिन धुआँ अर्थात् काला काला धुआँ छोड़ती हैं। शोर करती हुई रेलगाड़ियों की पंक्तियां निरन्तर दौड़ रही हैं। वाहनों की पंक्तियाँ असीमित (जिनका अन्त नहीं) हैं इसलिए (मार्ग में) चलना भी कठिन हो गया है। शुद्ध पर्यावरण के आश्रय में चलना चाहिए।

वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु ब हु शुद्धीकरणम्। शुचि .. ॥३॥

शब्दार्थाः ―
भृशं = अत्यधिकम् (अत्यधिक)
भक्ष्यम् = खाद्यपदार्थ (भोज्य पदार्थ)
समलम् = मलेन सह (मलयुक्त, गन्दगी से युक्त)

हिन्दी अनुवाद ― वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो गया है, क्योंकि पानी भी स्वच्छ (निर्मल) नहीं है। खाने की वस्तुएँ भी दूषित पदार्थों से युक्त हैं। धरती मैली अर्थात् प्रदुषण से युक्त है। अतएव बाहरी एवं आन्तरिक जगत् में अत्यधिक शुद्धीकरण (स्वच्छ) करना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है।

कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी- पयःपूरम्॥
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि .. ॥४॥

शब्दार्थाः ―
ग्रामान्ते = ग्रामस्य सीमायाम् (सीम्नि) (गाँव की सीमा पर)
पयःपूरम् = जलाशयम् (जल से भरा हुआ तालाब)
कान्तारे = वने (जंगल में)

हिन्दी अनुवाद ― कुछ समय के लिए मुझे इस शहर से बहुत दूर ले चलो। गाँव की सीमा पर (जहां मैं) जल से पूर्ण झरने और नदी को देख रहा हूँ। (उस) निर्जन शान्त वन में मेरा एक क्षण भी घूमना हो जाए अर्थात् मैं यहाँ क्षणभर घूमना चाहता हूँ। अतः शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है।

हरिततरुणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि .. ॥५॥

शब्दार्थाः ―
कुसुमावलिः = कुसुमानां पंक्तिः (फूलों की पंक्ति)
समीरचालिता = वायुचालिता (हवा से चलायी हुई)
रुचिरम् = सुन्दरम् (सुन्दर)

हिन्दी अनुवाद― हरे-भरे वृक्षों और सुन्दर बेलों की पंक्तियां (और) वायु द्वारा हिलाई जाती हुई फूलों की पंक्ति मेरे लिए वरण (स्वीकार) करने योग्य होनी चाहिए। नवमल्लिका आम के वृक्ष के साथ मिलकर सुन्दर संगम (साथ) प्राप्त कर रही है। अतः स्वच्छ वातावरण ही एकमात्र आश्रय है।

अयि चल बन्यो खगकुलकलरव गुज्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव सम्भमितजनेभ्यो पृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि .. ॥६॥

शब्दार्थाः ―
खगकुलकलरव = खगकुलानां कलरवः (पक्षिसमूहध्वनिः) (पक्षियों के समूह की ध्वनि)
चाकचिक्यजालम् = कृत्रिमं प्रभावपूर्णं जगत् (चकाचौंध भरी दुनिया)

हिन्दी अनुवाद ― अरे ! पक्षियों के समूह की सुन्दर ध्वनि से गुंजायमान वन प्रदेश को (मुझे) ले चलो, जिसने नगर के कोलाहल से त्रस्त लोगों के लिए शुभ समाचार धारण किया हुआ है। चकाचौंध भरी दुनिया जीवन के सार का विनाश न करे। अतः स्वच्छ वातावरण ही एकमात्र आश्रय है।

प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि .. ॥७॥

शब्दार्थाः ―
प्रस्तरतले = शिलातले (पत्थरों के तल पर)
लतातरुगुल्माः = लताश्च तरवश्च गुल्माश्च (लता, वृक्ष और झाड़ी)
पाषाणी = पर्वतमयी  (पथरीली)
निसर्गे = प्रकृत्याम् (प्रकृति में)

हिन्दी अनुवाद ― लता, वृक्ष और झाड़ियाँ पत्थरों के तल पर नष्ट नहीं होनी चाहिए। अर्थात् पाषाणकालीन सभ्यता प्रकृति में समाविष्ट नहीं होनी चाहिए मैं मानव के जीवन की कामना करता हूँ, जीवन के नष्ट होने की नहीं। अतः शुद्ध पर्यावरण की शरण में जाना चाहिए।

अभ्यासः

१. एकपदेन उत्तरं लिखत―
(उत्तर एक वाक्य में लिखिए)
(क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम्?
(यहाँ जीवन कैसा रहा है?)
उत्तरम् – दुर्वहम्।
(ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति?
(शहर में हर समय क्या चल रहा है?)
उत्तरम् – कालायसचक्रम्।
(ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति?
(इस कुत्सित चीज़ में क्या मिला हुआ है?)
उत्तरम् – भक्ष्यम्।
(घ) अहं कस्मै जीवनं कामये?
(मैं किसके लिए जीवन की कामना करूँ?)
उत्तरम् – मानवाय।
(ङ) केषां माला रमणीया?
(किसका हार सुन्दर है?)
उत्तरम् – हरिततरूणां ललितलतानाम्।

२. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए।)
(क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति?
(कवि प्रकृति का आश्रय क्यों चाहता है?)
उत्तरम् – कवि महानगरस्य दुर्वहं जीवनं दृष्ट्वा तस्मात् भीतः शुद्धपर्यावरणाय प्रकृतेः शरणम् इच्छति।
(कवि महानगरों के कठिन जीवन को देखकर उससे भयभीत होता है और शुद्ध वातावरण के लिए प्रकृति की शरण में जाता है।)
(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?
(महानगरीय क्षेत्रों में संचरण कठिन क्यों है?)
उत्तरम् – अहर्निशं लौहचक्रस्य सञ्चरणात् यानानां बाहुल्यात् च महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते।
(लोहे के पहिये की दैनिक आवाजाही और वाहनों की बहुतायत के कारण शहरों में परिवहन कठिन है।)
(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति?
(हमारे पर्यावरण में क्या-क्या प्रदूषित है?)
उत्तरम् – अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं, जलं, भक्ष्यं, धरातलं च दूषितम् अस्ति।
(हमारा पर्यावरण में हवा, पानी, भोजन और मिट्टी से प्रदूषित है।)
(घ) कविः कुत्र संचरणं कर्तुम् इच्छति?
(कवि कहाँ घूमना चाहता है?)
उत्तरम् – कविः ग्रामान्ते एकान्ते कान्तारे सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति। 
(कवि गाँव के अंत में एक सुनसान जंगल में घूमना चाहता है।)
(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?
(स्वस्थ जीवन के लिए मुझे किस प्रकार के वातावरण में भ्रमण करना चाहिए?)
उत्तरम् – स्वस्थजीवनाय शुचि – वातावरणे (पर्यावरणे) भ्रमणीयम्।
(स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण में भ्रमण करना चाहिए।)
(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?
(अंतिम कविता में कवि की इच्छा क्या है?)
उत्तरम् – अन्तिमे पद्यांशे कवेः कामना अस्ति यत् निसर्गे पाषाणी सभ्यता समाविष्टा न स्यात्।
(अंतिम छंद में कवि की इच्छा है कि प्रकृति में पाषाण सभ्यता का समावेश न हो।)

३. सन्धिं / सन्धिविच्छेदं कुरुत―
(संधि बनाए/संधि विच्छेद करें।)
(क) प्रकृतिः + -------- = प्रकृतिरेव।
(ख) स्यात् + ------- + ------ = स्यान्नैव।
(ग) ------- + अनन्ताः = ह्यनन्ताः।
(घ) बहि: + अन्तः + जगति = ---------
(ङ) -------+ नगरात् = अस्मान्नगरात्। 
(च) सम् + चरणम।  = -------
(छ) धूमम् + मुञ्चति = -------
उत्तरम् –
(क) प्रकृतिः + एव = प्रकृतिरेव।
(ख) स्यात् + न + एव = स्यान्नैव।
(ग) हि + अनन्ताः = ह्यनन्ताः।
(घ) बहि: + अन्तः+ जगति = बहिरन्तर्जगति।
(ङ) अस्मात् + नगरात् = अस्मान्नगरात्।
(च) सम् + चरणम् = सञ्चरणम्।
(ङ) धूमम् + मुञ्चति = धूमंमुज्वति।

४. अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत―
(नीचे दिए गए अव्यवों की सहायता से रिक्त स्थान भरें।)
(भृशम्, यत्र, तत्र, अत्र, अपि. एव. सदा, बहि)
(क) इदानीं वायुमण्डलं ------ प्रदूषितमस्ति।
(ख) -------- जीवनं दुर्वहम् अस्ति।
(ग) प्राकृतिक वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् ------ लाभदायकं भवति। 
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् ------- प्रकृतेः आराधना।
(ड़) -------- समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पित-समये -------- गमनमेव उचितं भवति।
(छ) ------- हरीतिमा ------ शुचि पर्यावरणम्।
उत्तरम् – 
(क) इदानीं वायुमण्डलं भृशम् प्रदूषितमस्ति।
(ख) अत्र जीवनं दुर्वहम् अस्ति।
(ग) प्राकृतिकवातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति। 
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
(ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
(छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्।

५. (अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत―
(निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।)
(क) सलिलम् ― जलम्
(ख) आम्रम् ― रसालम्
(ग) वनम् ― काननम् (कान्तारम्)
(घ) शरीरम् ― तनुः (देहम्)
(ङ) कुटिलम् ―  वक्रम्
(च) पाषाणाम् ― प्रस्तरम् ।

(आ) अधोलिखितापदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत―
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखिए।)
(क) सुकरम् ― दुष्करम्।
(ख) दूषितम् ― शुचि।
(ग) गृहणन्ती ― वितरन्ती
(ङ) दानवाय ― मानवाय 
(च) सान्ताः ― अनन्ताः

६. उदाहरणमनुसृत्य पाठत् चित्वा समस्तपदानि समासनाम च लिखत―
(उदाहरण का पालन करें और पाठ का चयन करें और सभी शब्द और यौगिक संज्ञा लिखें।)
विग्रहपदानि ――――समस्तपद ――――समास नाम
यथा― (क) मलेन सहितम् ―― समलम् ――अव्ययीभाव
(ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) ― हरिततरूणाम् ― कर्मधारय
(ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) ― ललितलतानाम् ― ~"~
(घ) नवा मालिका ―――――― नवमालिका ―― ~"~
(ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) ― धृतसुखसन्देशम्― बहुब्रीहि
(च) कज्जलम् इव मलिनम् ― कज्जलमलिनम् ― कर्मधारय
(छ) दुर्दान्तैः दशनैः ― दुर्दान्तदर्शनैः ―――――― ~"~

७. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत―
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण करें।)
(क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति ।
प्रश्नम् ― शकटीयानं कीदृशं धूमं मुञ्चति?
(ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति । 
प्रश्नम् ― उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति?
(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति ।
प्रश्नम् ― पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति?
(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति ।
प्रश्नम् ― कुत्र वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति? 
(ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते ।
प्रश्नम् ― कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते?

योग्यता विस्तारः

यह पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह 'लसल्लतिका' से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यांत्रिक बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तन-मन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं। कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदी-निर्झर, वृक्षसमूह, लताकुज्ज एवं पक्षियों से गु वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

समास― समसनं समासः

समास का शाब्दिक अर्थ होता है- संक्षेप दो या दो से अधिक पदों के मिलने से जो नया और संक्षिप्त रूप बनता है, वह समास कहलाता है। समास के मुख्यतः चार भेद हैं―
१. अव्ययीभाव
२. तत्पुरुष
३. बहुव्रीहि
४. द्वन्द्व

१. अव्ययीभाव― इस समास में पहला पद अव्यय होता है और वही प्रधान होता है और समस्तपद अव्यय बन जाता है।
यथा― निर्मक्षिकम् मक्षिकाणाम् अभावः।
यहाँ प्रथमपद निर् है और द्वितीयपद मक्षिकम् है। यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अतः यहाँ अव्ययीभाव समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखें―
(i) उपग्रामम् ― ग्रामस्य समीपे ― (समीपता की प्रधानता)
(ii) निर्जनम् ― जनानाम् अभावः ― (अभाव की प्रधानता)
(iii) अनुरथम् ― रथस्य पश्चात् ― (पश्चात् की प्रधानता)
(iv) प्रतिगृहम् ― गृह गृह प्रति ― (प्रत्येक की प्रधानता)
(v) यथाशक्ति ― शक्तिम् अनतिक्रम्य ― (सीमा की प्रधानता)
(vi) सचक्रम् ― चक्रेण सहितम् ― (सहित की प्रधानता)

२. तत्पुरुष ― 'प्रायेण उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुष:' इस समास में प्रायः उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्व पद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है।
यथा― राजपुरुष: अर्थात् राजा का पुरुष। यहाँ राजा की प्रधानता न होकर पुरुष की प्रधानता है।
अन्य उदाहरण― 
(i) ग्रामगतः ― ग्रामं गतः।
(ii) शरणागतः ― शरणम् आगतः।
(iii) देशभक्त ― देशस्य भक्तः।
(iv) सिंहभीत ― सिंहात् भीतः।
(v) भयापन्नः ― भयम् आपन्नः।
(vi) हरित्रातः ― हरिणा त्रातः।
तत्पुरुष समास के दो प्रमुख भेद हैं― कर्मधारय और द्विगु

(i) कर्मधारय―  इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है। विशेषण विशेष्य भाव के अतिरिक्त उपमान उपमेय भाव भी कर्मधारय समास का लक्षण है।
यथा― 
पीताम्बरम् ― पीत च तत् अम्बरम्।
महापुरुषः ― महान् च असौ पुरुषः।
कज्जलमलिनम् ― कज्जलम् इव मलिनम्।
नीलकमलम् ― नील च तत् कमलम्।
मीननयनम् ― मीन इव नयनम्।
मुखकमलम् ― कमलम् इव मुखम्।

(ii) द्विगु― 'संख्यापूर्वी द्विगु:' इस समास में पहला पद संख्यावाची होता है और समाहार (एकत्रीकरण या समूह) अर्थ की प्रधानता होती है।
यथा― त्रिभुजम् ― त्रयाणां भुजानां समाहारः।
(इसमें पूर्वपद 'त्रि' संख्यावाची है।)
पंचपात्रम् ― पंचाना पात्राणा समाहारः।
पंचवटी ― पंचाना वटाना समाहारः।
सप्तर्षिः ― सप्तानाम् ऋषीणां समाहारः।
चतुर्युगम् ― चतुर्णा युगानां समाहारः।

३. बहुबीहि ― 'अन्यपदार्थप्रधान: बहुब्रीहि' इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
यथा― 
पीताम्बरः ― पीतम् अम्बरम् यस्य सः (विष्णु)। यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द की अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है।
नीलकण्ठः ― नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।
दशाननः ― दश आननानि यस्य सः (रावणः)।
अनेककोटिसारः ― अनेककोटि सारः (धनम् ) यस्य सः।
विगलितसमृद्धिम् ― विगलिता समृद्धिः यस्य तम् (पुरुषम्)।
प्रक्षालितपादम् ― प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम् (जनम् )।

४. द्वन्द्व ― 'उभयपदार्थप्रधानः द्वन्द्व:' इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों की समान रूप से प्रधानता होती है। पदों के बीच में 'च' का प्रयोग विग्रह में होता है।
यथा― 
रामलक्ष्मणौ ― रामश्च लक्ष्मणश्च
पितरौ ― माता च पिता च
धर्मार्थकाममोक्षा ― धर्मश्च, अर्थश्च कामश्च. मोक्षश्च।
वसन्तीष्मशिशिरा: ― वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।

भावविस्तारः

पृथिवी, जल, तेजो वायुराकाशश्चेति पञ्चमहाभूतानि प्रकृतेः प्रमुखतत्वानि एतैः तत्त्वेरेव पर्यावरणस्य रचना भवति। आवियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम्। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सर्वविधजीवनसुखं ददाति। अस्माभिः सदैव तथा प्रयतितव्यं यथा जलं स्थलं गगनच निर्मल स्यात्। पर्यावरणसम्बद्धाः केचन श्लोकाः अधोलिखिताः सन्ति―
हिन्दी अनुवाद ― पर्यावरण प्रकृति के पाँच महान तत्वों पृथ्वी, जल, प्रकाश, वायु और आकाश से बना है। पर्यावरण वह संसार है जो चारों ओर से चारों ओर से आता है। परिष्कृत एवं प्रदूषण मुक्त वातावरण हमें जीवन में सभी प्रकार की खुशियाँ प्रदान करता है। हमें जल, थल और आकाश को सदैव पवित्र रखने का प्रयास करना चाहिए। पर्यावरण से संबंधित कुछ श्लोक नीचे दिये गये हैं―
यथा―
पृथिवीं परितो व्याप्य, तामाच्छाद्य स्थितं च यत्।
जगदाधाररूपेण, पर्यावरणमुच्यते।।
हिन्दी अनुवाद ― वह जो पृथ्वी में व्याप्त है और उसे आच्छादित कर स्थित है। ब्रह्माण्ड का आधार होने के कारण इसे पर्यावरण कहा जाता है।

प्रदूषणविषये (प्रदूषण के बारे में)―
सृष्टौ स्थितौ विनाशे च नृविज्ञैर्बहुनाशकम्।
पञ्चतत्त्वविरुद्ध यत्साधित तत्प्रदूषणम्।।
हिन्दी अनुवाद ― यह सृष्टि, अस्तित्व और संहार में महाविनाशकारी है, ऐसा ऋषि मुनियों ने कहा है।
जो पांच तत्वों के विरुद्ध किया जाता है वह प्रदूषण है।

वायुप्रदूषणविषये (वायु प्रदूषण के बारे में)―
प्रक्षिप्तो वाहनैर्धूमः कृष्णः बह्वपकारकः।
दुष्टै रसायनैर्युक्तो घातकः श्वासरुग्वहः।।
हिन्दी अनुवाद ― वाहनों से निकलने वाला काला धुआं बहुत हानिकारक होता है। यह घातक है और दुष्ट रसायनों से युक्त श्वसन संबंधी रोगों का कारण बनता है।

जलप्रदूषणविषये (जल प्रदूषण के बारे में)―
यन्त्रशालापरित्यक्तै नगरे दूषितद्रवैः।
नदीनदौ समुद्राश्च प्रक्षिप्तैर्दूषणं गताः।।
हिन्दी अनुवाद― कारखानों से निकले हुए अपशिष्ट, शहरों के दूषित द्रव पदार्थ से नदियाँ और समुद्र प्रदूषित हो गए हैं।

प्रदूषणनिवारणाय भूसंरक्षणाय च―
(प्रदूषण को रोकना और भूमि की रक्षा करना)
शोधन रोपण रक्षावर्धन वायुवारिणः।
वनानां वन्यवस्तूना भूमेः संरक्षण वरम्॥
हिन्दी अनुवाद ― शुद्धि, रोपण, सुरक्षा, संवर्द्धन, वायु और जल। वनों और वन्य जीवों से पृथ्वी की रक्षा करना बेहतर है।

एते श्लोका: पर्यावरणकाव्यात् संकलिताः सन्ति।
(ये छंद पर्यावरण काव्य से संकलित हैं।)

तत्सम-तद्भव शब्दानामध्ययनम्
(तत्सम और तद्भव शब्दों का अध्ययन)-
अधोलिखितानां तत्समशब्दानां तदुद्भूतानां च तद्भवशब्दानां परिचयः करणीयः ―
(नीचे लिखें तत्सम और तद्भव शब्दों से परिचित होना चाहिए।)
तत्सम ― तद्भव
प्रस्तर ― पत्थर
वाष्प ― भाप
दुर्वह ― दूभर
वक्र ― बाँका
कज्जल ― काजल
चाकचिक्य – चकाचक (चकाचौंध)
धूमः ― धुआँ
शतम् ― सौ (१००)
बहिः ― बाहर

छन्दः परिचयः ― अस्मिन् गीते शुचि पर्यावरणम् इति ध्रुवकं (स्थायी) वर्तते तदतिरिक्त सर्वत्र प्रतिपङ्क्ति 26 मात्राः सन्ति। इदं गीतिकांच्छन्दसः रूपमस्ति।
हिन्दी अनुवाद ― इस गीत में स्वच्छ पर्यावरण के स्थिरांक (स्थायी) के अलावा हर जगह प्रति पंक्ति 26 अक्षर हैं। यह गेय पद्य का एक रूप है।

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)

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