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वर्ण्यते अभिव्यञ्ज्यते वा लघुतमो ध्वनिः येन स वर्णः। (अर्थात् ध्वनि का वह लघुतम इकाई, जो अखण्डित हो वर्ण कहलाती है।)
जैसे— मोहनः शब्द में म्+ओ+ह्+अ+न्+अ और स् (:) – ये ७ वर्ण हैं। इन सातों वर्णों में से किसी का भी खण्ड नहीं किया जा सकता ये अखंडित हैं। अतः ये वर्ण हैं।
संस्कृत में प्रयुक्त ध्वनियाँ— संस्कृत में वर्तमान में कुल 47 ध्वनियाँ प्रचलित हैं। स्वर— 14 तथा व्यञ्जन— 33 हैं।
स्वर वर्ण— स्वयं राजन्ते इति स्वराः। (अर्थात् वे वर्ण जो स्वयं उच्चरित हो स्वर वर्ण या अच् कहलाते हैं।
स्वर ध्वनियाॅं— अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ, ॠ, अं तथा लृ हैं।
१. कण्ठ स्थान से उच्चारित स्वर — अ, आ, आऽ
२. तालु स्थान से उच्चारित स्वर — इ, ई, ईऽ
३. ओष्ठ स्थान से उच्चारित स्वर — उ, ऊ, ऊऽ
४. मूर्धा स्थान से उच्चारित स्वर — ऋ, ऋृ, ॠऽ
५. दन्त स्थान से उच्चारित स्वर — ऌ, ॡ, ॡऽ
६. कण्ठ-तालु स्थान से उच्चारित स्वर — ए, ऐ
७. कण्ठौष्ठ स्थान से उच्चारित स्वर — ओ, औ
८. नासिका स्थान (अनुस्वार) स्थान से उच्चारित स्वर — अं, इं, ऊं, एं
९. कण्ठ स्थान (विसर्ग) स्थान से उच्चारित स्वर — अः, इः, उः
मात्रा काल के आधार पर स्वरों के तीन प्रकार—
१. ह्रस्व स्वर — अ, इ, उ, ऋ, ऌ
२. दीर्घ स्वर — आ, ई, ऊ, ॡ
३. प्लुत स्वर — आऽ, ईऽ, ॠऽ, ॡऽ
टीप— ऌ स्वर के लिए दीर्घत्व नहीं है किंतु ध्यान में रखना चाहिए कि विवृत-प्रयत्न ऌ वर्ण के लिए दीर्घत्व नहीं है। ईषत् स्पृष्टप्रयत्न ऌ वर्ण के दीर्घत्व है।
प्लुत स्वरों का विश्लेषण—
सामान्यतः ह्रस्व स्वर के उच्चारण की लम्बाई एक मात्रा, दीर्घ स्वर के उच्चारण की दो मात्रा, प्लुत स्वर के उच्चारण की तीन मात्रा होती हैं। अर्थात् जितना समय ह्रस्व के लिए लगता है, उससे दुगुना दीर्घ के लिए तथा तीन गुना प्लुत के लिए लगता है। दूर से किसी को पुकारने के समय अन्तिम स्वर प्लुत होता है।
जैसे— 'हे धनञ्जयाऽ अत्र आगच्छ' (हे धनञ्जयाऽ यहाॅं आ।)
उक्त वाक्य में धनञ्जय के यकार में जो आकार है वह प्लुत है और उसकी उच्चारण की लम्बाई तीन गुनी है।
इसी तरह अन्य उदाहरण देखें तो– शहरों में मार्ग पर तथा स्टेशन आदि पर चीजें बेचनेवाले अपनी चीज़ों के विषय में प्लुत स्वर से पुकारते हैं।
जैसे—१. ख--टा--इ--याॅं
२. नि--म्--बू--पा--नी
३. चा--य--ग--र--म
इसी प्रकार अन्य सैकड़ों स्थानों पर प्लुत स्वर का श्रवण होता है। वेदों के मन्त्रों में जहाॅं ऽ चिह्न या ३ (तीन) संख्या दी हुई रहती है, उसके पूर्व का स्वर प्लुत बोला जाता है। मुर्गा कु१ कू२ कू३ ऐसी आवाज देता है। उसमें पहला उ ह्रस्व, दूसरा दीर्घ तथा तीसरा प्लुत होता है।
उदात्त, अनुदात्त, स्वरित स्वर— स्वरों के भेदों के सिवाय उदात्त, अनुदात्त, स्वरित ऐसे प्रत्येक स्वर के तीन भेद हैं, जो केवल वेदों में इनका अध्ययन होता है।
निम्न संकेतार्थं अ, ॶ, ॳ स्वर क्रमशः उदात्त, अनुदात्त, तथा स्वरित प्रकार वेद में आते हैं।
उक्त के अलावा संस्कृत में स्वरों के ये दो प्रकार भी हैं—
(१) गुण स्वर— अ, ए, ओ, अर्, अल्
(२) वृद्धि स्वर— ऐ, औ, आर्, आल्
उक्त गुण और वृद्धि क्रम से अ, इ, उ, ऋ, लृ, इन स्वरों को समझना चाहिए। इस प्रकार स्वरों पर अब सामान्य विचार होना लगभग समाप्त हो चुका है।
R.F. Temre (Teacher)
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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